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आंगणैं रो हक / राजूराम बिजारणियां
Kavita Kosh से
चेतन कर चूल्हो
झोवै चाकी
चंचेड़ै ऊणां-खूणां
जगाणै आंगणैं नै।
डांगर खोल खूंटा
देवै बांटो
आंख फुरतां
भर ल्यावै गूणियों
दूध रो
मुंधारै।
फळसै नै बतावै सींव
बाखळ नै
सिखावै मिजमानी
थळी नै देंवती संस्कार
बांध्यां राखै पल्लै
सगळां रै पांती री चिंतावां
म्हारी मा.!
म्हैं देवूं
गैड़ा माथै गैड़ा
तिबारी अर आंगणैं बिचाळै
मा रै ओळावै।
मा होवण रो मतळब
आंगणैं रो हक है.!