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आंगन बदबूदार हुआ है / उर्मिल सत्यभूषण

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आंगन बदबूदार हुआ है
सारा घर बीमार हुआ है

मानवता की लाश बिछी है
क़त्ल सरे बाजार हुआ है

पाला मार गया फ़सलों को
सारा श्रम बेकार हुआ है

पांचाली के बाल खुले हैं
चीर हरण हर बार हुआ है

स्नेह संधि के बीच दरारें
हर रिश्ता व्यापार हुआ है

मुर्झाई सपनों की फ़सलें
अब यह जीवन भार हुआ है

चीलों, गिद्धों की दावत को
भीषण नर संहार हुआ है

अंधी नगरी अंधा राजा
चौपट यह दरबार हुआ है

उर्मिल आग लगा दे इसमें
कूड़े का अम्बार हुआ है।