भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आंतरौ / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राम-राम सा!
राम-राम!
किस्यौ गाम आपरौ?
अर बातां बध ज्यांवती बेल दांई
फूटरी!

हमै
बां बेला माथै पसरगी है अम्बर बेल,
जिन्नगी जेळ!

अर सबद साख भरै
झूठ री!