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आंतरौ / प्रमोद कुमार शर्मा
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राम-राम सा!
राम-राम!
किस्यौ गाम आपरौ?
अर बातां बध ज्यांवती बेल दांई
फूटरी!
हमै
बां बेला माथै पसरगी है अम्बर बेल,
जिन्नगी जेळ!
अर सबद साख भरै
झूठ री!