आइस बादर करिया / श्यामलाल चतुर्वेदी
तपिस बहुत दू महिना तउन सूरज मुंह तोपिस फरिया।
जउन रंग ला देख सेम के, पावन जुड़ाथे टिपथे
जाड़ के दिन में सूर्रा हो आंसू निकार मुंह लिपथे।
गरम के महीना सांझ होय, आगी उगलय मनमाना,
तउने फुरहुर सुघघ्र चलिस, जइसे सोझवा अनजाना।
राम भेंट के सउरिन बुढिया कस मुस्काइस तरिया...
का किसान के सुख कइहा, बेट वा बिहाव होइ जइसे।
दौड़ धूप सरजाम सकेलय, काल लगिन होय अइसे।
नागर बैला बिजहा जोंता, नहना सुघर तुतारी।
कांवर टु कना ज़ोर करय धरती बिहाव के त्यारी।
बरकस बिजहा घाट पहिनय, डोला जेकर कांवर।
गीत ददरिया भोजली के गावै, मिल जोड़ी जांवर।
झेंगरा थरिस सितार बताइस, मिरदंग बेंगवा बढिया।
बजै निसान गरज बिजली, छुरछुरी चलाय असढिया।
राग पाग सब माढ़ गइन हे, माढिस जम्मों घरीया.....
पहरो उप्पर जाके अरसे, बादर घिसलय खेलय।
जइसे कल्लू पारबती संग, कर ढेमचाल ढपेलय।
मुचमुचही के दांत सही, बिजली चमकय अनचेतहा।
जगम ले आंखी बरै मुंदावै करय झड़ी सरसेतहा।
तब गरीब के कलकूत मातय, छान्ही तीर तर रोवय।
का आंसू झन खंगै समझ, आघुवा के अबड़ रितोवय।
सुख संगीत सुनावै तरि नरि ना मोरिना अरि आ।