आकार लेती एक रचना / मनोज चौहान
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बात कोई,
छू जाती है जब,
ह्रदय तल की,
गहराइयों को,
या कभी,
पीड़ा और तकलीफ देते,
क्रिया - कलाप,
घटनाएं व दृश्य,
कर देते हैं बाध्य,
भीतर के समुन्दर में,
गोता लगा देने को l
जेहन में बसाये,
इन तमाम पहलुओं को,
जीता है रचनाकार,
रात – दिन,
हर पल,
निज अनुभव ,
के धरातल पर l
ताकि निकाले,
जा सकें बाहर,
जागृत व प्रेरित करते,
सीख देते ,
और रुग्ण,
मानसिकताओं के,
अंतस को,
कचोटते,
चहूँ ओर,
नाद करते,
शब्दों के मोती l
करता है मंथन वह,
प्रकृति, जीव, समाज,
विश्व, देश व काल का,
खंगालता है,
उधड़ते और जड़ हो चुके,
रिश्तों को,
टटोलता है,
बालमन को भी l
और जब,
द्वंद करते ,
विचारों का वेग,
लाँघ जाता है,
चरम सीमाओं को
तो उकेर देता है वह,
उन्हें कागज पर l
आकार लेती,
इस तरह,
एक रचना,
लिए हुए मशाल,
क्रांति की,
बन जाती है ,
पथ प्रदर्शक,
मानवता और समाज की l