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आख़िरी सफ़्हा मौत है / शहनाज़ इमरानी
Kavita Kosh से
मौत के बाद कुछ नहीं
फिर जीवन नहीं, ग़म नहीं, ख़ुशी नहीं
जिस हद तक दुनिया में उलझे हो
उतना ही मौत से ख़ौफ़
अपने को मुक्त रखना मुश्किल है
पर दरख्त बदलते हैं लिबास
और साँप अपनी केंचुली
अपने 'में' से निजात भी मुश्किल नहीं
पर मरने से पहले मारना नहीं
अन्धविश्वास का न अन्धेरा होगा
बन्द आँखों में भी न डर होगा
न दुःख होगा
ज़िन्दगी की किताब का
आख़िरी सफ़्हा मौत है
मुझे यक़ीन है
मौत के बाद कुछ भी नहीं