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आख़िर ! कब तक / पूनम तुषामड़
Kavita Kosh से
आखिर किस-किस बात की
दोगे तुम सज़ा मुझे
और कब तक...?
धातु के बर्तन इस्तेमाल करने की
घी चुपड़ी रोटी खाने की
आभूषण पहनने की
नई पोषाक पहनने की
गांव के बीच से बारात निकालने की
कक्षा में प्रथम आने की
घोड़ी पर चढ़ कर जाने की
या इंसान को
इंसान की तरह
जीने की
पर खबरदार!अब मेरे समाज के हाथ में
भी चाबुक है शक्ति का
जो तुम्हारे दंभ को
चूर-चूर करने का
रखती है हौंसला।