भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आखिरी मुलाकात / कल्पना पंत
Kavita Kosh से
उस आखिरी मुलाक़ात
के बीतने के बाद
अब तुमसे हुई जो बात
चांद फिर आया मेरे हाथ
तुम्हारी आवाज में वही तुम
कुछ शामें जी जिसके साथ
तुम्हारी तस्वीर से मिल आनलाइन
मैं आंखें बंद करती हूँ
अंतस में वही छवि उभरती है।
वाट्सऐप पर कभी-कभी
बात नहीं होती पर मुलाकात होती है।
बांचने के बहाने तुम
हाथों में थाम मेरा हाथ
फिर बैठते हो साथ
पार्क की वे शामें
वे सुनहरे दिन
क्या करुं तुम बिन?