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आगाही / सरस्वती माथुर
Kavita Kosh से
एक चट्टान
अब लौटते हैं चलो
सब कुछ खोकर
आत्म चैतन्य के प्रकाश में
क्योंकि हमें
ज्ञान है
दूर मन के बीचों बीच
उतरने के लिए
एक चट्टान है।