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आगे ऋतु बसंत / पीसी लाल यादव
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आगे ऋतु बसंत, तैंहा नई आए,
केंवची करेजा ल काबर कल्पाए?
कुहु-कुहु कोयली, गावत हवय गाना
गाना गा-गाके, मारे मोला ताना।
परसा फूल बैरी आगी लगाए।
आगे ऋतु बसंत, तैंहा नई आए।
मऊरगे हे आमा, मात गेहे मऊहारी
रंग गुलाल पिचकारी, खेलत हे संगवारी।
तोर सुरता म, नैना नीर बरसाए
आगे ऋतु बसंत, तैंहा नई आए।
महर महर रिग-बिग फूले हे फुलवा।
रस चुहके करिया भौंरा, झूलत हे झुलवा।
फूल-फूल झूल के मोला बिजराए
आगे ऋतु बसंत, तैंहा नई आए।