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आग / तेज राम शर्मा
Kavita Kosh से
आग
चूल्हे में बुझ रही है
जल चुके हैं
छोटे-मोटे लक्कड़
पहले ही
दरवाज़ा खोलता हूँ
देखता हूँ पहाड़ की चोटी से
उतर रही है बर्फ़ानी हवा
बुझाने को
आतुर
आग को
बचे हुए कुछ अंगारों को।