आजकल / मनजीत टिवाणा / हरप्रीत कौर
मेरी नज़रों में
सिर्फ़ मेरी अनलिखी कविताएँ पढ़ सकते हैं आप ।
आजकल मेरे हाथों में
आप सूली की कीलें ठुकीं
देख सकते हैं ।
आजकल आप
सौतेले हाथों हमारी क़ब्रों पर
दीये जलते देख सकते हैं ।
आजकल हमारी चुप्पी में
आप समय की धूल उड़ती देख सकते हैं ।
आजकर उम्मीद की आँख में आप
सूखा उगा देख सकते हैं ।
आजकल परिन्दों के सहन में
मेरा घर खोज सकते हैं आप ।
आजकल आप सड़कों को
मेरी ख़ामोशी की ओर लौटते देख सकते हैं ।
आजकल
मेरी मिट्टी के जायों को
पेड़ों में बदलते देख सकते हैं आप ।
आजकल आप
हमें काले सूरज की कचहरी में
पेशी भुगतते देख सकते हैं ।
आजकल हमारे सपनों में
दूर तक मोहनजोदड़ों-हड़प्पा के खण्डहर
देख सकते हैं आप ।
आजकल हमारे नामों में
आप
मौत के पते पढ़ सकते हैं ।
आजकल हमारे वजूद को आप
पोर-पोर बिंंधते
देख सकते हैं ।
आजकल ...
पंजाबी से अनुवाद : हरप्रीत कौर