आडावळ अष्टक / दीपसिंह भाटी 'दीप'
टेर - आभे सूं थारो जश ऊंचो, कहे रयो कूंचो कूंचो।
बोल बोल आडावळ बांधू ,उमणो दुमणो क्यूं ऊभो।।
आडावळ रै न्यूते ऊपर, अळगी दिस सूं आयो हूं।
मायड़ भासा मंडियो मैळो, लाख उम्मीदां लायो हूं।
मुगट सोवणो धर मेवाड़ी, इल पर तूं है एक अजूभो।
बोल बोल आडावळ बांधू , उमणो दुमणो क्यूं ऊभो।। ।।1।।
आडावळ इतिहास ऊजळो, भळक रयो भाटो भाटो।
कुण कुण रमिया खागां कबडी, लीनो कुण अरियां लाटो।
कठै गया थारा कारीगर, कठै गयो बो भड़ कूंभो।
बोल बोल आडावळ बांधू , उमणो दुमणो क्यूं ऊभो।। 2।।
भलांए आयो तूं भाईड़ा, बांह पसारै गिरी बोल्यो।
धणी म्हारा हा धरम धजाळा, ताकत पाण म्हने तोल्यो।
म्हारो दुखड़ो जाणूं म्हूं ही, अरपूं किणने ओळूंभो।
बोल बोल आडावळ बांधू , उमणो दुमणो क्यूं ऊभो।।3।।
मरजादां रो खरो मानवी, कुंभलगढ महाराण कठै।
तलवारां धरती तोलणियो, कासबसुत हिन्दवाण कठै।
आज कठै वो राणो अनमी, थरहर मेवाड़ी थंभो।
बोल बोल आडावळ बांधू , उमणो दुमणो क्यूं ऊभो।। 4।।
गया कठै वो बादळ गोरा, जयमल पत्ता जोवण दे।
आंसूड़ा आंखड़ियां अटक्या, हळको हिवड़ो होवण दे।
पदमणियां पूछे पंथीड़ा, लाधो कोई बाजू लूंबो।
बोल बोल आडावळ बांधू , उमणो दुमणो क्यूं ऊभो।।5।।
कठै गयो वो सांगो केहर, जिण बाबर ने जरकायो।
खानवा रण में घोड़ा खेड़या,दुसमी को मद दरकायो।
भळहळ रजवट मान भळकियो, डरतां सूरज नी डूबो।
बोल बोल आडावळ बांधू , उमणो दुमणो क्यूं ऊभो।।6।।
हलदी घाटी मारै हेला, जीत हार तो जोवतो जा।
बळती जौहर अगन बुलावै, सत री बातां सुणतो जा।
पन्ना मां री कोख पुकारै, उदियापुर जिणसूं ऊभो।
बोल बोल आडावळ बांधू , उमणो दुमणो क्यूं ऊभो।।7।।
आडावळ रा नर अलबेला, नारी सतव्रत निरमाती।
आन बान हित जीवण अरपे, छीले रिपुवां री छाती।
गौरव गाथा 'दीप' गुंजावै, उदियाणै ऊभो ऊभो। ।
बोल बोल आडावळ बांधू , उमणो दुमणो क्यूं ऊभो।।8।।