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आतंकी / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
बाहर नहि
भीतर रहैत छैक
आतंकक जड़ि।
पहिने घृणाक आगि
भीतर पजरैत छैक
फेर बाहर भऽ जाइत छैक-
धधरा
करय लगैत छैक
नाश
आतंकी फेरि लैत अछि मुँह
निर्माणसँ
नाशकें ओ शस्त्र आ शास्त्र
बना लैत अछि।
हमरा प्रतीक्षा अछि
आतंकी कहिया बनौतैक निर्माणकें
अपन केन्द्रविन्दु
बाँटतैक
प्रेमक सनेस।