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आत्महत्या से ठीक पहले / केतन यादव

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कितनी नीरवता छाई होगी उस कमरे में
उस पंखे के आस-पास
उस चेयर पर जहाँ अब हैं केवल
पंजे के निशान
एक अकाल खालीपन
और उम्मीदों के अंतिम साक्ष्य ।

अगर तुम ठीक-ठीक
उसकी आत्महत्या की वजह तलाश रहे
तो तुम्हारे हाथ पूरा समाज लग सकता है
हो सकता है एक अपराधी के सौ चेहरे हों
या हर चेहरे पर एक ही अपराधबोध रहित बेशर्म चुप्पी

भीड़ की कोई शक्ल नहीं होती
यह बात तो तुम जानते ही होगे
और इसी कारण मॉब लीचिंग के अपराधी
अक्सर बेहद सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता होते
अति सामाजिक

अपने समाज के कंधों पर
लड़खड़ाते क़दम पहुँच जाती है श्मशान
मूक अचेत लाश
यह अलग बात है कि
‘अर्थी उठाने का कोई नियम नहीं होता’
अपनी-अपनी मुक्ति की दी हुई परिभाषाओं से अलग
किसी और लोक में जहाँ न स्वर्ग का दूत होता
न ही नर्क का कोई यम
वहाँ बस कालकवलित स्वप्न होते हैं

और क्या करे वह ?
कौन-सा विकल्प रहा होगा शेष
जो नहीं तलाश किया होगा उसने
मोबाइल पर बहुत से निकटतम कांटेक्ट
हो चुके होंगे उस पल अभूतपूर्व अजनबी
गैलरी की स्क्रोल्ड की हुई सभी तस्वीरें
और पूरी ज़िन्दगी की एक सॉर्ट रील भी
बहुत कमजोर और अप्रभावी साबित हुई होगी
उस एक पल के बदले

उन ख़यालों को तकिये के नीचे रखे सिर की तरह
दबा देना चाहता होगा वह
पानी भरी बाल्टी में डुबो देना चाहता होगा
आख़िरी बुलबुले तक
हवा में लटकती हुई साँस टाँग देना चाहता होगा
या फिर नदी की धार में समय हो जाना चाहता होगा
और नहीं तो फिर
पी ली होगी उसने जीवन की सारी तिक्तता
जिसके सापेक्ष कोई अमृत नहीं हुआ होगा
उस सदेह के लिए

जीवन से उबरने की कोशिशों में पड़ा मन
अपनी ही जाल में फँसी मकड़ी है
छटपटाते हुए एक-एक खाना टूटता जाता है
और एक पल कुछ भी नहीं होता
हाथ में थामने को
लड़खड़ाता हुआ नीचे गिर जाता है आदमी
आदमी मकड़ी नहीं हो पाता

वह भी जीने के लिए पैदा हुआ होता है
और मुझे पूरा विश्वास है कि ज़िन्दगी उसके लिए
हम सबसे ज़्यादा ज़रूरी रही होगी
और यह भी मानता हूँ मैं कि
कोई न कोई एक टाल सकता था पल को

आत्महत्या के सच्चे प्रयत्नों में
‘मौत के आ जाने और चूक जाने के मध्य
एक जीवन का अंतर होता है’
मौत के ऐच्छिक भँवर में भी जीवन का हाथ काम्य होता
यह समझता है डूबने वाला
आत्महत्या से ठीक पहले तक ।