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आदमी / अरविन्द यादव
Kavita Kosh से
मुश्किल हा गया है आज
समझना आदमी को
वैसे ही जैसे
नहीं समझा जा सकता है
बिना छुए, गर्म होना पानी का
बिना सूँघे, सुगन्धित होना फूल का
और बिना खाए स्वादिष्ट होना भोजन का
क्यों कि जैसे देखना
नहीं करता है प्रमाणित
पानी की गर्माहट
फूल की सुगन्धि
और स्वादिष्टता भोजन की
बैसे ही सिर्फ़ आदमी की शक्ल
नहीं करती है प्रमाणित
आदमी का आदमी होना।