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आदमी और घास / विष्णु नागर
Kavita Kosh से
आदमी घास इस तरह नहीं खाता
जैसे वह जानवर हो
वह पहले घास की रोटी बनाता है
फिर उसे नमक के साथ खाता है
वह पत्थर भी खा सकता है
लेकिन उसकी रोटी नहीं बनाई जा सकती
और आदमी को रोटी इतनी प्रिय है
कि उसे सबकुछ खिला दो
मगर रोटी नहीं खिलाओ तो षिकायत करता है
कि देखो उन्हें, उन्होंने तो भैया,
हमें उस दिन रोटी तक को नहीं पूछा था!