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आदमी की पाण्डुलिपि / सरोज कुमार
Kavita Kosh से
कहाँ है वह?
है भी क्या कहीं?
क्या वह थी भी कभी?
प्रकृति के छापखाने में
जाने अनजाने में
आदमी के रूप में
कैसी-कैसी पोथियाँ छप रही है?
कैसी ढेर कि ढेर
बाजार में खप रही हैं!
कैसे-कैसे संस्करण!
लटका हुआ जीवन
पिचका हुआ मरण!
हत्या के सर्ग और घृणा के अध्याय,
दुरभिसंधियों के ये विस्तृत संकाय,
दर्शन में सौम्य, तीर्थ, भीतर षडयंत्र,
शापों से भरा हुआ एक किलष्ट मंत्र!
वह है भी क्या कहीं
आदमी की मूल प्रति?
जिससे मिलाई जा सके
प्रत्येक नई कृति!
टूटे वाक्य, पेरेग्राफ
बिखरे छ्ंद,
कली, पंखुरियाँ, सुरभि मकरंद!
आदमी की पाण्डुलिपि की खोज,
हो सकेगी सफल,
क्या किसी खोज?