भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आपनोॅ देश / विनय प्रसाद गुप्त
Kavita Kosh से
देश के स्वतंत्राता खातिर
चाहियोॅ आत्मा के स्वतंत्राता
आत्मा के स्वतंत्राता खातिर
चाहियोॅ चरित्रोॅ के स्वच्छता ।
स्वच्छ चरित्रा बचैतै देश केॅ
स्वच्छ चरित्रा बढ़ैतै देश केॅ
यही सें बनतै राष्ट्र-चरित्रा
यही सें होतै देश पवित्रा ।
पवित्राता मूल मंत्रा छेकै
स्वच्छता मूल तंत्रा छेकै
निपुणता मूल यंत्रा छेकै
यही सफल गणतंत्रा छेकै ।
आपनोॅ देशोॅ के संस्कृति
कण-कण में विद्यमान छै
आपनोॅ देशोॅ के प्रकृति से
लोगोॅ के जान छै, शान छै ।