आराधना / रचना उनियाल
आराधना माँ कर रहे, हम ज्ञान के याचक बनें।
द्युतज्ञान दे संज्ञान दे, अधिमान के पालक बनें।।
ब्रह्मा सुता है शारदा, वाणी सुवासित कीजिए।
शब्दों झरें भावों वरें, मन प्राण भाषित कीजिए।।
धन श्वेत वर्णों का धरें, माँ शांति की है कामना।
शुचि भाव विस्मृत हो कभी, हे श्वेतवर्णी थामना।।
हिय भाव पंकज हों सदा, हम मात अनुवादक बनें।
आराधना माँ कर रहे, हम ज्ञान के याचक बनें।
ऋतुराज वन की पंचमी, में मालिनी भू पर खिली।
फिर वाटिका को रम्य कर, खिल पुष्प मधुवन में पली।।
अलि डोलते सौरभ खिले, उत्साह पीले रंग में।
आई धरा पर भारती, बह भारती की गंग में।।
मधुमास पावन प्रेम के, बन नेह संवाहक बनें।
आराधना माँ कर रहे, हम ज्ञान के याचक बनें।।
हंसासना के ध्यान में, जड़ता मनुज मारण करें।
चौंसठ कलाएँ धारती, माँ हंसिनी भूषण करें।।
संचार आशा का रहे, बिसरे निराशा अंक से।
हो नम्रता ही शीर्ष पर, दुर्जन रहें सब रंक से।।
मद मोह त्यागें लोभ भी, हम बुद्धि प्रतिपादक बनें।
आराधना माँ कर रहे, हम ज्ञान के याचक बनें।