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आवाज़ें / कंस्तांतिन कवाफ़ी
Kavita Kosh से
आवाज़ें, प्रीति-पगी और मिसाल बन चुकीं
उनकी, जो मर गए, या—
जो मरे हुओं की ही तरह
हमारे लिए गुम हो गए,
उनकी ।
कभी-कभार वे ख़्वाबों में हमसे बतियाते हैं
कभी-कभार सोच में गहरे डूबा दिमाग़ उनको सुनता है ।
और उनकी आवाज़ के साथ, पल भर के लिए
लौट आती हैं हमारी ज़िन्दगी की पहली कविता की आवाज़ें—
जैसे कि रात के वक़्त मद्धिम पड़ता जाता दूरस्थ संगीत ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल