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आवारा हवाओं के खिलाफ़ चुपचाप / अभिज्ञात
Kavita Kosh से
स्पन्दन बचा है अभी
कहीं, किन्हीं, लुके-छिपे संबंधों में
अन्न बचा है
अनायास भी मिल जाती हैं दावतें
ऋण है कि
बादलों को देखा नहीं तैरते जी-भर
बरस चुके कई-कई बार
क्षमा है कि-बेटियाँ
चुरा लेती है बाप की जवानी
उनकी राजी-खुशी
जोश है बचा
कि रीढ़ सूर्य के सात-सात घोड़ों की ऊर्जा से
खींच रही है गृहस्थी
कहीं एक कोने में बचे हैं दु:ख
जो तकियों से पहले लग जाते हैं सिरहाने
और नींद की अंधेरी घाटियों में
हाँकते रहते हैं स्वप्नों की रेवड़
पृथ्वी पर इन सबके चलते
बची है होने को दुर्घटना
प्रलय को न्योतते हुए
नहीं लजाएँगे अगली सदी तक हम।