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आशा अमर धन-1 / भरत ओला
Kavita Kosh से
कई बार मेरे भीतर
एक मुलायम दुनिया
मुस्कुराने लगती है
कमली का ब्याह,
हंसता, महकता खेत
बिलोवणे<ref>मिट्टी का बड़ा पात्र जिसमें दही मथा जाता है</ref> में मक्खन
ठाण<ref>पशुओं के चरने का स्थान</ref> में मक्खन में चरती गाय
नथिये और रहमान की कबड्डी
नहाया घर
टिमटिमाता आकाश
तभी ‘धड़ाम’
चिकमकता हूं
देखता हूं
धुंए के बादलों में
मेरा दम घुटने लगता है
भागता हूं
घर के भीतर
जहाँ घुप्प अंधेरे में
चमगादड़ जोड़े बैठे है मींटिंग
अच्छे नही है
उनके इरादे
घर के हालात
बावजूद इसके
मुझे चलाए रखने है
छेनी हथौड़ा
घड़ ही लूंगा
कभी न कभी
एक मुलायम दुनिया
शब्दार्थ
<references/>