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आहत / वंदना मिश्रा
Kavita Kosh से
जो शब्दों से चोट खाते हैं
आहत होते हैं
दुनिया भर में
नहीं होते, उनके इलाज
वे घायल ही रहते हैं हमेशा
पर उन्हीं के नील पड़े मन से
नीला रंग लेता है आसमान
उन्ही के प्रेम की लालिमा से
रोशनी बिखेरता है सूर्य।