भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आ अब लौट चलें / दिनेश शर्मा
Kavita Kosh से
मुअन जोदडो से प्राप्त
सिंधु घाटी के अवशेष
मिट्टी की गाडी
कांसे के बर्तन
आभूषण और औजार
जैसी हजारों वस्तुएँ
पर
कोई हथियार न मिलना
सिद्ध करता है
शासन की स्वच्छता
तानाशाही का अभाव
सभ्य ,अनुशासित जीवन
एक समृद्ध संस्कृति को
जो आमन्त्रित करती है हमें
छोडकर ऎसी आधुनिकता को
जहाँ है खून-खराबा
हर ओर शोर-शराबा
सब ओर
हर मोड पर
यमराज नज़र आता
आदमियों के अथाह समन्दर में
नहीं इन्सान नज़र आता
चल लौट चलें
उस और चलें
आ लौट चलें ।