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आ रहा है ज्वार देखो! / यतींद्रनाथ राही

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लहर की अठखेलियों पर
भूल मत जाओ हक़ीक़त
है अभी सोया समुन्दर
आ रहा है ज्वार देखो!

नाम सेवा का लिया था
मिल गयी जागीरदारी
कुछ तुम्हारे कर्म-फल थे
कुछ कहो क़िस्मत हमारी
किन्तु अब
हालात बदले हैं
समय की धार देखो!

लग रही है आग
सारा देश जैसे जल रहा है
है धुआँ अँधियार गहरा
और
सूरज ढल रहा है
क्षितिज पर गहरे उभरते
रंग के आसार देखो!

लड़ रहे नक्षत्र नभ में
टूटकर उल्का गिरे हैं
देवता अपने न जाने
कौन संकट में घिरे हैं
आ रहा परित्राण हित
अब कौन सा
अवतार देखो!

19.06.2017