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इंतज़ार / आनंद कुमार द्विवेदी

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मैं विदा नहीं करता किसी को भी
चले जाते हैं सब के सब
अपने आप ही,
अपने स्वयं के जाने तक
मुझे देखना है बस सबका
आना और आकर चला जाना

इस उम्मीद में हूँ कि
शायद कोई ठहरे
पूछे
कि कैसे हो,
कोई कहे
कि आओ साथ चलें,
मगर एक इंतजार के सिवा
कोई ठिठकता भी नहीं अब पास

इंतजार कुछ कहता नहीं
मैं भी कुछ पूछता नहीं,
हम दोनों हैं
मौन,
एक दूसरे से ऊबे हुए
एक दूसरे के साथ को अभिशप्त !