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इंतज़ार की जगह / लीलाधर जगूड़ी
Kavita Kosh से
आज के संगीत की सीढ़ियाँ
आकाश में
कल के पत्तों से ढक दी हैं
इनसे होकर उतरना
मैं यहाँ हूँ
सैकड़ों वर्ष पुराने संगीत की चट्टान पर
ताज़ा खोदी हुई मिट्टी की गंध से भरी
आसपास मेरी वर्तमान पृथ्वी है
कोख का सारा कोयला दहकाए हुए ।