भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इंसान नै हा / मथुरा प्रसाद 'नवीन'
Kavita Kosh से
हे हो किसान मजदूर भाय
उठ के लेला
अपन देस बनाबै के साय
हम्हू ले हियो
ई बयाना
कि जब तक
नै मिलतो तोरा पेट भर दाना
तब तक
कलम तलवार के काम करतो,
जब तक
तोरा पर जुल्म होबैत रहतो
हमर कलम
जुल्मी के संहार के काम करतो
सुन नै रहला हे?
बलात्कार के करऽ हे?
चंदा उगाह के
कदाचार के करऽ हे?
कुछ कहो
तहूं जानऽ हा
सबके पहचानऽ हा
अनजान नै हा तों
एत नौ पर सहऽ हा
तब इंसान नै हा तों।