भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इण घर रा रैवणिया / कुंदन माली
Kavita Kosh से
इण घर में रैवणिया रै विचार सूं
देस री हालत
चिलम भरतां सुधर जावे
जे सै लोग
हिलमिल जावै
परवार-समाज री चिंतावां
लारै छूट जावै
जे सै लोग
अेक दूजै पे भरोसो दिखावै
चारूं म्हेर सुख-संमदरियो लैरावै
जै सै लोग
अेकण सागै
काम माथै जुट जावै
मानखा रै ओलै-दोलै़ घेरो घालती
भूख-बीमारी-बेकारी सै भाग छूटै
जे लोग
एक रोटी ने पण
बांट-चूंट खावै
पाड़ोसियां रै ख्याल सूं
इण घर रा रैवणिया लोग
इण भांत भला मिनख है क’
अेक-दूजै ने आपस में
फूटी आंख्यां नीं भावै !