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इतर में भीग रही / हिन्दी लोकगीत
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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इतर में भीग रही हैं ये सेहरे की लड़ी-२
भरी महफ़िल में बन्ने के बाबा से कह दो
दोनों हाथों से उठा ले ये सेहरे की लड़ी
इतर में भीग रही हैं ये सेहरे की लड़ी-२
भरी महफ़िल में बन्ने के ताऊ से कह दो
दोनों हाथों से उठा ले ये सेहरे की लड़ी
इतर में भीग रही हैं ये सेहरे की लड़ी-२
भरी महफ़िल में बन्ने के पापा से कह दो
दोनों हाथों से उठा ले ये सेहरे की लड़ी
इतर में भीग रही हैं ये सेहरे की लड़ी-२
भरी महफ़िल में बन्ने के चाचा से कह दो
दोनों हाथों से उठा ले ये सेहरे की लड़ी
इतर में भीग रही हैं ये सेहरे की लड़ी-२