भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इतिहास / शशिप्रकाश

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तितलियों के अश्मीभूत पँख
बन जाते हैं नश्तर
और आँसू और पारा

एकसमान कठोर
हीरे के एक टुकड़े की तरह

मगर उदासी
सहस्राब्दियों बाद भी
कुहासे की तरह बनी रहती है

और स्मृतियाँ नहीं छोड़ती हैं
दस्तक देते रहने की आदत

और स्वप्नों का
पुनर्जन्म होता रहता है  !