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इमारते / भारती पंडित
Kavita Kosh से
कल तक जहां दिखाते थे हरे लहलहाते खेत
अब नजर आने लगे हैं मशीनी दानव वहां
धरती के सीने पर चलेंगे पहेये बुलडोजर के
एक ही दिन में धरती बंजर वीरान हो जाएगी .
फिर शुरू होगा खेल खरीदो-फरोख्त का
और माँ सी उपजाऊ धरती बोली की भेंट चढ़ जाएगी ,
धन्ना सेठ ले आएगा आदमियों की फौज भारी
उपजाऊ खेतों को मिटा लम्बी इमारतें तानी जाएँगी .
घर -बाज़ार-स्कूल अस्पताल, लोगों की हलचल होगी
मगर इन सब में गुम हो जाएगी कराह धरती की.
क्या फिर पके दानों की महक हवा को महका पाएगी?
क्या फिर बैलों की घंटियाँ कानों में गूँज पाएंगी ?
शोरगुल में डूबे मन में क्या कभी ये सोच आएगी?
शाश्वत प्रकृति को तो नष्ट किया हमने ,अब
ये नश्वर इमारतें कितना साथ निभाएंगी?