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इसी घर में लगातार / प्रभात त्रिपाठी

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बादलों की तरह मण्डराते हैं शब्द
अन्तस के आकाश में
आओ हम छिप जाएँ घर में
बच्चों को डराती है माँ
 
आनेवाली बारिश को एहतियातन
तूफान बनती है माँ
तूफान में तिनके-सा असहाय
एक मुद्दत से रह रहा हूँ
इसी घर में लगातार

यहीं मैंने जाना प्यार
यहीं मैंने देखी नफ़रत
यहीं मुझे मिली
अपनी बेटी सी सगी
एक अजीबोगरीब राहत

यहीं मुझे पता लगा
भले ही सारा कुछ शब्द है
पर मै वह नहीं लिख रहा
जो है
जो था
जो होगा
मैं कुछ और लिख रहा हूँ