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इस बहाने / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
इंटेंशनली नहीं आती आंधी
नियति से बंधी
बेमन से आकर चली जाती है
इस बीच जरूर कुछ अपने
पहचान जिन्हें बता दी गई होती है
पैरों की धूल।
आंख की किरकिरी बनकर
बैर निकाल लेते हैं
समझा देते हैं औकात बताने का सबक।