भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ई-मेल / निशान्त जैन
Kavita Kosh से
धूम मचाती रंग जमाती,
मन को भाती है ई-मेल।
चुटकी भर में दौड़ी जाए
एक पल में जवाब पहुँचाए,
कुरियर या स्पीड पोस्ट हो
इसके आगे हैं सब फेल।
चिट्ठी लंबी-चौड़ी कितनी
फाइलें साथ लगी हों जितनी,
बड़े-बड़े संदेशे ढोए
जैसे हो बच्चों का खेल।
बस साइबर कैफे पर जाना
या ब्रॉडबैंड कनेक्शन लाना,
डाक-कुरियर के खर्चों को
अब क्यों मोनू-पिंकी झेल।
जगह-जगह के बच्चे आएँ
भाँति-भाँति के मित्र बनाएँ,
अपनी खुशियाँ सबसे बाँटें
हो जाए दुनिया का मेल।