भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ई मौका / खुशीलाल मंजर
Kavita Kosh से
आय चानऽ केॅ डूबेॅ नै देबै
झब झब करबैं हुनका सें बात
लाज सरम सब धोय केॅ पीबै
घुरतै तेॅ घुरबे करतै बारात
ई मौका नै जाबेॅ देबै
कहिया मिलबऽ के जानै छै?
हमरा लेली जोनै हरदम
सब दुख आय तक सहलेॅ जाय छै
केनां केॅ भूलियै हुनका सोचऽ
मरतौं दम तक रहबै साथ
भाय चानऽ केॅ डूबेॅ नै देबै
है जिनगी नै भूलेॅ पारौं
प्रीत नैं हुबेॅ देबै राख
चन्दन तेॅ चन्दन हीं रहतै
लाख जमाबेॅ लोगें साख
हमरऽ दिल में जे छै बसलऽ
हुनका पूजबै दिन आरो रात
आय चानऽ केॅ डूबेॅ नैं देबै
है तेॅ हमरऽ जानलै बात छै
लोगै तेॅ करतै बदनाम
हैकरऽ मानेॅ है गैं छेकै
हम्मैं भूलबै हुनकऽ नाम
हमरऽ दिल तेॅ साफ छै एकदम
जे रं ठहाका चाननी रात
आय चानऽ केॅ डूबेॅ नै देबै