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उजाला अब न साया / ज्ञानेन्द्र पाठक
Kavita Kosh से
उजाला अब न साया रह गया है
दिया बुझ करके तन्हा रह गया है
यहाँ अब कौन है जो दर्द बाँटे
यहाँ अब कौन अपना रह गया है
उतर आये सितारे सब ज़मीं पर
फ़लक पर चाँद तन्हा रह गया है
दिए की लौ ये शब से पूछ बैठी
अभी कितना अँधेरा रह गया है
बुझा डाले दिए यादों के हमने
मगर फिर भी उजाला रह गया है