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उड़ने को तैयार नहीं / बुद्धिनाथ मिश्र
Kavita Kosh से
चिड़ियाघर के तोते को है
क्या अधिकार नहीं !
पंख लगे हैं, फिर भी
उड़ने को तैयार नहीं ।
धरती और गगन का
मिलना एक भुलावा है
खर-पतवारों का सारे
क्षितिजों पर दावा है ।
आवारे घन का कोई
अपना घर-द्वार नहीं।
घोर निशा के वंशज
सूरज का उपहास करें
धूप-पुत्र ओस के घरों में
कैसे वास करें ।
काँटों में झरबेरी फबती,
हरसिंगार नहीं ।
गर्वित था जो कंटकवन का
पंथी होने में
सुई चुभ गई उसे
सुमन का हार पिरोने में ।
कुरुक्षेत्र में कृष्ण
मिला करते हर बार नहीं ।