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उड़ान / रेणु हुसैन
Kavita Kosh से
मुझे मत खींचो
तुम्हारे प्यार का बंधन बहुत प्यारा है
तुम्हारे नेह के धागे बहुत मज़बूत हैं
तुम्हारे शिरा के अंग-अंग से
स्वर्णिम तार निकलते हैं
तुम्हारी जलमयी आँखों के विधुत
मुझे खींचते हैं
मुझे मत रोको
कुछ देर मुक्त कर दो
मुझे जग में विचरने दो जरा
खुद से परिचित होने दो
इन आँखों के सागर के नीचे
एक सीप में मोती है
उसको पा लेने दो मुझे
मुझे मत पुकारो
अपनी मीठी बातों के मोहजाल में
मुझको मत डालो
मुझे सागर में डूब जाने दो
मंथन करने दो
रखकर तुम्हारा प्यार
वक़्त के किसी पुराने पन्ने पर
तुम्हारे नेह की सीमा से पार
मुझे जाने दो
उड़ जाने दो मुझे
किसी तितली
की तरह
एक पंछी की तरह
खुली हवा में