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उडीक में / नवनीत पाण्डे
Kavita Kosh से
काली-कलूटी, टूटी-फूटी मुर्दा सड़क
जी उठती है अचानक
जब भी तुम गुजरती हो
हम दोनों घण्टों बतियाते हैं एक-दूजे से
तुम्हारे हर लौट जाने के बाद
तुम्हारे फिर लौट आने की उडीक में