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उत्सव का निर्मम समय / नंद चतुर्वेदी

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किसी भी दिन
मैं देखूँगा तुम्हारा चेहरा
जिस पर उत्सव के दिन वाली
उदासी का विवरण लिखा मिलेगा

अब उत्सव के दिन होते हैं
सब से अधिक व्यर्थ
चोर की तरह ले जाने वाले
एक स्मृति बची-बचाई

उत्सव में कौन आएगा
वसंतसेना, वासवदत्ता
माइकल जैक्सन, चिदम्बरम
या जंगली सूअर
वह नहीं आएगी क्या
विश्व-सुन्दरी
क्या तो भी
ना है जिसका

उत्सव के आतंक में
गाँव पतझड़ के पेड़ जैसा
दरिद्र और निस्पृह हो गया है
औरतों के कंधों पर नंग-धड़ंग
बच्चे बैठे हैं
लज्जा से
अपनी नुन्नी दोनों जंघाओं में छिपाये

दिल्ली कहाँ है जहाँ उत्सव है
वहीं राष्ट्रपति हैं
राष्ट्र कहाँ है
उसकी आँखों में सूर्य-चन्द्रमा हैं
खेतों पर पड़ी दुःख की लम्बी छायाएँ
रोटी के आकार का राष्ट्र
बची-खुची आकांक्षाओं का उत्सव है

वे थक गये हैं
उत्सव के एक दिन पहले
सड़क पर गाँव वाली लड़की की लाश मिली थी
बच्चे को चिपकाये अपने स्तन से
उत्सव के एक दिन पहले
लड़कियाँ ट्रक में भर दी गयी थीं
वध-स्थल पर ले जाए जाने वाले
मेमनों की तरह

कौन-से उत्सव से आयी हो
वसन्तसेना !
कौनसा उत्सव है
इन दिनों
इस अँधेरे की राजधानी में

जरा धीरे चलो, प्रिय !
धीरे चलोगी तभी नजर आएगा
यह वीरान और तुम्हारे पार्श्व में
चलने वाला
उत्सव का निर्मम समय।