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उदासीनता / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
ज़बानें बदलती हैं
बात नहीं
जहाँ बहुत घुमा-फिराकर
बोला जाता है
वहाँ ईमानदारी के लिए
जगह नहीं होती
कई रासायनिक क्रियाओं के बाद
एक विस्फोट होता है
और कान पर
जूँ नहीं रेंगती
सारी आतुरता
अपने पक्ष में होती है
दूसरों के मामले में
उदासीनता
इस हद तक
जड़ बना देती है
कि सामने
क़त्ल होते देखकर
आदमी खिसक लेता है