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उन्नत भाल / रश्मि विभा त्रिपाठी

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12
है अविभाज्य
तुम सुख-साम्राज्य
बढ़ाते चलो।
13
तुम फूल-से
सदा खिलखिलाओ
खुश्बू फैलाओ।
14
तुम सूर्य-से
अँधेरे भय खाते
थरथराते!
15
तुम रंग-से
धन्य भाग हों बड़े
जिसपे पड़े!
16
तुम शिव-से
स्वयं विष पी लिया
जीवन दिया!
17
करते क्षमा
कौन सी मैं उपमा
तुम्हें अब दूँ?
18
तुम सरल
मन बड़ा निर्मल
मन्दाकिनी- सा!
19
तुम गंगा- से
जो आचमन करे
निश्चय तरे!
20
तुम शैल- से
मात्र मन- मैल से
टूट पड़ते!
21
यही माँगती
तुम फूलो औ फलो
सुख में पलो।
22
उन्नत भाल
उनके आशीष का
ये है कमाल।
23
पाया आशीष
तुमसे प्रफुल्लित
प्राण-शिरीष।