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उपज /सत्यप्रकाश जोशी
Kavita Kosh से
आ उपज !
सौ-सौ गुणी बध ।
आ, धरा सूं, गिगन सूं,
नित कळ-मसीनां सूं
मिनख रै बुकियां रो, मन-मगज रो जोर लै
विग्यांन नै इण कांम गाड़ी जोत
कर दै कनक मूंघी रज
आ उपज ! सौ-सौ गुणी सज !
म्हे गिणां संख्या अरब मैं
सब अरब हां पांच
पांच मूंढा जीमवा नै,
पांच तन, सुख पोखवा नै
ब्स अरब हां पांच ।
पण है हाथ म्हारा दस अरब
दस अरब पग है, पंख है
अर ग्यांन रा घर दस अरब
चीज रै लारै फिरै जद चीज री कीमत
आ उपज
सौ-सौ गुणी बध ।