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उभरने लगा है / सांवर दइया
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					दिसम्बरी अदीतवार
कोहरे में डूबा समूचा शहर
मैं तुम्हारी याद में
उधर कोहरे को चीर
आहिस्ता-आहिस्ता तैरती 
आ रही है सोनल धूप 
इधर मन के तालाब में
महकने लगा है कंवल 
आंखों के आगे उभरने लगा है चांद …. !
	
	