उम्र अब आई है मेरे पास
मेरी बेटी बन
सीने से लिपटी है शोख़ चंचल-सी वह
कितनी मासूम-सी है अदा
कैसी इठलाती है
बलखाती है
मेरा बचपन जैसे लौट आया है
पागलों-सा मैं
जंगलों से गुज़रता फिरूँ
नदियों को मापता हुआ
सूरज मेरे दामन में है
आँखों में चाँदनी
उम्र बेख़ौफ़ है ।