भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उम्र की चादर / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
Kavita Kosh से
उम्र की चादर की
बुक्कल मारकर
बैठी है लड़की
नीम उजाले में
इन्तज़ार का स्वेटर
बुनती जाती है
आँखें टिकी हैं
उम्र कुतरती सलाइयों पर
फिर भी फ़न्दे हैं कि
छूट- छूट जाते हैं
उम्र-
फूटे घडे़ के पानी की तरह
बूँद बूँद कर रिसती रहती है ।
लड़की
अधूरे स्वेटर की पीड़ा
उम्र के हर मोड़ पर
चुपचाप सहती है ।