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उल्लास / केदारनाथ मिश्र 'प्रभात'
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खीचूँगा ललाट पर तेरे
मैया! रक्त-तिलक मैं आज!
मैं उच्छृंखल नष्ट करूँगा
तेरी अटल-शांति के साज!
विध्वंसक त्रिशूल ले तेरा
नृत्य करूँगा मैं विकराल!
छोडूँगा फुफकार भयंकर
बनकर विराट विष-भरा व्याल!
दूँगा मसल वासुकी का फन
चुटकी से मैं महाप्रचंड!
कहलाऊँगा विश्व-विधात्री का
विद्रोही-पुत्र उदंड!
आँखों में भर क्रोध भयंकर
अग्नि-शिखा-मिस ज्वालामय!
टहलूँगा संसार-समर में
रूद्र-सरीखा मैं निर्भय!
कर डमरू का नाद रचूँगा
पल में घोर प्रलय का कांड!
लील सूर्य-शशि-तारा-दल को
तोड़-फोड़ दूँगा ब्रह्मांड!
7.1.29