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उसी तरह बहने देना / दिनेश जुगरान
Kavita Kosh से
जिस तरह रहते हैं पेड़
मौसम से आश्वस्त
ठंड को सहते
पुरानी इमारतों के पत्थर
धूप को रेगिस्तानों की रेत
बर्फ़ की चादर पहनते हैं पर्वत
हवा को लयबद्ध करते बादल
समय की आँखों में
झांकती हैं सदियों से ध्यानस्थ
मंदिर की मूर्तियाँ
बस यूं ही
हाँ, बस यूं ही
देख लेना
जीवन के आर-पार तुम
और
जैसे
इमारतें लगती हैं पृविी का ही अंग
परमद्रष्टा के आनंद में हैं मग्न पेड़
पहाड़ चुमते हैं आकाशों को
रेगिस्तानों में सजते हैं नृत्य
हवा बहती है सुगंधित
हाँ
बस
उसी तरह बहने देना
अपने जीवन को